महिला सशक्तिकरण बनाम पारिवारिक जिम्मेदारियाँ: संतुलन की राह

महिला सशक्तिकरण बनाम पारिवारिक जिम्मेदारियाँ: संतुलन की राह

आज के समय में महिलाओं की भागीदारी हर क्षेत्र में बढ़ रही है। वे करियर में नए आयाम छू रही हैं, बिजनेस में सफल हो रही हैं और समाज में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज कर रही हैं। लेकिन इसी के साथ एक महत्वपूर्ण प्रश्न भी खड़ा होता है—क्या करियर की दौड़ में परिवार और बच्चों की जिम्मेदारियों को नज़रअंदाज़ किया जा सकता है?

समाज में एक नया चलन देखने को मिल रहा है, जहां कुछ महिलाएँ हर आयोजन में उपस्थित रहती हैं, सामाजिक मेलजोल में व्यस्त रहती हैं, और घर की जिम्मेदारियाँ धीरे-धीरे कम होती जाती हैं। क्या यह आवश्यक नहीं कि इन महिलाओं से यह प्रश्न किया जाए कि वे घर पर कितनी बार भोजन बनाती हैं? क्या परिवार सिर्फ स्विगी और जोमैटो जैसे फूड डिलीवरी प्लेटफॉर्म पर निर्भर रहकर जीवित रह सकता है? क्या यह सही है कि व्यस्त जीवनशैली के चलते परिवार और बच्चों की आवश्यकताओं को नज़रअंदाज़ कर दिया जाए?

करियर-ओरिएंटेड होना निस्संदेह एक अच्छी बात है, लेकिन क्या यह परिवार और बच्चों की कीमत पर होना चाहिए? बच्चों के पालन-पोषण में माँ की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। जब माता-पिता, विशेष रूप से माँ, अपने करियर में अत्यधिक व्यस्त हो जाती हैं, तो बच्चों को डे-केयर में छोड़ दिया जाता है। वे वहीं बड़े होते हैं, वहीं खेलते हैं और वहीं अपनी भावनात्मक ज़रूरतें पूरी करने की कोशिश करते हैं। यह एक कटु सत्य है कि जब ये बच्चे बड़े होते हैं और अपने करियर में व्यस्त हो जाते हैं, तो माता-पिता की देखभाल करने के बजाय वे उन्हें वृद्धाश्रम में छोड़ने से भी नहीं हिचकिचाते।

यह प्रश्न विचारणीय है कि जब बच्चों को बचपन में माता-पिता का स्नेह नहीं मिला, तो बड़े होकर वे अपने माता-पिता से भावनात्मक लगाव कैसे रखेंगे? जब माता-पिता ने अपने करियर को प्राथमिकता दी और बच्चों को डे-केयर के भरोसे छोड़ दिया, तो क्या यह स्वाभाविक नहीं कि बड़े होने के बाद वे भी अपने माता-पिता को वृद्धाश्रम में छोड़ दें?

आज की आधुनिक जीवनशैली ने कई सुविधाएँ दी हैं, लेकिन क्या यह सुविधाएँ परिवार की आवश्यकताओं की पूर्ति कर पा रही हैं? बाहरी भोजन बच्चों के स्वास्थ्य के लिए लाभदायक नहीं होता, और माता-पिता की अनुपस्थिति उनके मानसिक और भावनात्मक विकास पर असर डालती है। यह समझना आवश्यक है कि करियर की सफलता और पारिवारिक संतोष के बीच संतुलन बनाए रखना ही असली सफलता है।

इस संतुलन को बनाए रखने के लिए समय प्रबंधन अत्यंत आवश्यक है। महिलाएँ यदि अपने कार्य और परिवार के बीच सामंजस्य बिठाएँ, तो दोनों का लाभ उठाया जा सकता है। यह आवश्यक नहीं कि हर महिला घर पर रहकर केवल परिवार की देखभाल करे, लेकिन यह भी आवश्यक है कि करियर की दौड़ में परिवार की अहमियत को न भूला जाए। यदि महिलाएँ और उनके जीवनसाथी मिलकर घर की जिम्मेदारियों को साझा करें, तो यह संतुलन आसानी से बनाया जा सकता है।

इसके लिए कुछ महत्वपूर्ण बिंदुओं पर ध्यान देना आवश्यक है। सबसे पहले, महिलाओं को अपने समय का बेहतर प्रबंधन करना होगा। करियर और परिवार दोनों को समय देना होगा। दूसरे, पति-पत्नी दोनों को मिलकर घर की ज़िम्मेदारियों को साझा करना चाहिए ताकि दोनों अपने-अपने करियर में आगे बढ़ सकें और परिवार को भी पर्याप्त समय दे सकें। तीसरे, बच्चों के साथ गुणवत्तापूर्ण समय बिताना अत्यंत आवश्यक है ताकि वे माता-पिता के स्नेह और मार्गदर्शन से वंचित न रहें। चौथे, घर का भोजन प्राथमिकता होनी चाहिए, ताकि परिवार को पौष्टिक आहार मिल सके और स्वास्थ्य बना रहे। और अंत में, सप्ताहांत और छुट्टियों को परिवार के साथ बिताने की आदत डालनी चाहिए, जिससे आपसी लगाव बना रहे।

करियर और परिवार दोनों ही जीवन के महत्वपूर्ण हिस्से हैं। एक को दूसरे की कीमत पर नहीं छोड़ा जा सकता। जो महिलाएँ घर और करियर में संतुलन बिठाने में सफल होती हैं, वही वास्तव में सशक्त महिला कहलाने के योग्य होती हैं। यह संतुलन सिर्फ महिलाओं की ही नहीं, बल्कि पूरे समाज की जिम्मेदारी है। जब परिवार मजबूत होगा, तभी समाज भी सशक्त बनेगा।

©®पायल लक्ष्मी सोनी 

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