वर्दी में भारत की बेटियां
भारत की माटी ने सदा से ऐसी वीरांगनाओं को जन्म दिया है जिन्होंने समय-समय पर यह प्रमाणित किया है कि स्त्री केवल सृजन की शक्ति ही नहीं, अपितु संकट की घड़ी में रक्षा और युद्ध की देवी भी बन सकती है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जब अपनी पीठ पर पुत्र को बांधकर तलवार लेकर अंग्रेजों से लड़ीं, तब इतिहास ने जाना कि भारत की नारी केवल गृहस्थ की रक्षक नहीं, राष्ट्र की स्वाधीनता की भी अभिभावक है। अहिल्याबाई होलकर ने शासन चलाकर यह सिद्ध किया कि स्त्रियां न्याय, नीति और कर्तव्य का उत्तम समन्वय बनाकर समृद्धि ला सकती हैं। जीजाबाई ने शिवाजी को मातृसंस्कारों से सिंचित कर हिंदवी स्वराज्य का बीज बोया था। आज जब भारत की बेटियां वर्दी पहनकर सीमा पर खड़ी होती हैं, तो इतिहास की यह नारी चेतना वर्तमान में जीवंत होती दिखती है।
विंग कमांडर व्योमिका सिंह और कर्नल सोफिया कुरैशी जैसे नाम नारी शक्ति के ऐसे प्रेरणास्रोत हैं जो हर बेटी को यह विश्वास देते हैं कि उनके सपनों की ऊंची उड़ान के लिए कोई भी सीमा अब रुकावट नहीं। विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने 18 दिसंबर 2004 को भारतीय वायुसेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत प्रवेश लिया। एक हेलिकॉप्टर पायलट के रूप में उन्होंने हाई एल्टीट्यूड मिशनों का नेतृत्व किया, जो कि किसी भी पायलट के लिए एक चुनौती होती है। चेतक और चीता जैसे हेलिकॉप्टरों पर 2500 से अधिक उड़ान घंटे का रिकॉर्ड बनाकर उन्होंने न केवल तकनीकी दक्षता का परिचय दिया, बल्कि यह भी बताया कि भारतीय नारी सिर्फ सशक्त नहीं, अत्यंत सक्षम भी है। 15 अगस्त 2021 को भारतीय वायुसेना की टीम के साथ उन्होंने 21,625 फीट की ऊंचाई पर स्थित माउंट मणिरंग पर सफल चढ़ाई की—यह मिशन केवल एक पर्वतारोहण नहीं, बल्कि भारतीय नारी की ऊंचाइयों को छूने की अदम्य आकांक्षा का प्रतीक है।
इसी प्रकार कर्नल सोफिया कुरैशी, गुजरात की बेटी, जिन्होंने 17 वर्ष की आयु में सेना में प्रवेश कर यह बता दिया कि इच्छाशक्ति उम्र की मोहताज नहीं होती। उन्होंने बायोकैमिस्ट्री में पोस्ट ग्रेजुएशन किया और 2006 में संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों में भाग लेकर विश्वपटल पर भारत की स्त्री शक्ति का परचम लहराया। ‘एक्सरसाइज फोर्स 18’ जैसे अंतरराष्ट्रीय कार्यक्रम का नेतृत्व करने वाली वह पहली भारतीय महिला अधिकारी बनीं—यह केवल एक पद नहीं, बल्कि उस सामाजिक बदलाव की प्रतिध्वनि है जो भारत में नारी की भूमिका को केवल सीमित नहीं, अनंत संभावनाओं से जोड़ता है।
आज भारतीय सेना में लगभग 12,000 से अधिक महिलाएं विभिन्न शाखाओं में कार्यरत हैं, जिनमें से कई स्थायी कमीशन पर भी हैं। सेना की हर शाखा—थलसेना, नौसेना, वायुसेना—में महिलाओं की भागीदारी निरंतर बढ़ रही है। लड़ाकू पायलटों, इंजीनियरों, डेंटल कोर, इंटेलिजेंस, लॉजिस्टिक्स, मेडिकल और यहां तक कि SSB जैसी इकाइयों में भी महिलाएं निर्णायक भूमिकाएं निभा रही हैं। वर्ष 2020 में सुप्रीम कोर्ट ने यह ऐतिहासिक निर्णय दिया कि महिलाओं को स्थायी कमीशन के साथ-साथ कमांड पदों पर भी नियुक्त किया जा सकता है। यह निर्णय केवल एक कानून की घोषणा नहीं, बल्कि भारतीय स्त्री की सदियों पुरानी संघर्ष गाथा का न्यायिक उत्तर था।
महिलाएं आज सेना में न केवल भर्ती हो रही हैं, बल्कि नेतृत्व कर रही हैं। रेस्क्यू ऑपरेशन हो या प्राकृतिक आपदा, मेडिकल सेवा हो या युद्ध क्षेत्र, महिला अधिकारी अपनी सूझबूझ, साहस और प्रतिबद्धता से मिसाल कायम कर रही हैं। वे केवल आदेश का पालन नहीं करतीं, अब आदेश देती हैं। वे केवल सहायता नहीं करतीं, अब नेतृत्व करती हैं।
जब कोई बेटी बुलेटप्रूफ जैकेट पहनती है, जब उसकी बंदूक से राष्ट्र का सुरक्षा संकल्प झलकता है, जब उसका आदेश पूरा बटालियन सुनता है—तब वह लक्ष्मीबाई की जीवित परछाई बन जाती है। जब वह सर्जरी में एक सैनिक को जीवनदान देती है, तब वह अहिल्याबाई की करुणा और विवेक का साक्षात रूप होती है। जब वह कठिन प्रशिक्षण में अपने साथियों को आगे बढ़ने की प्रेरणा देती है, तब वह जीजाबाई के संस्कारों की लौ बन जाती है।
वर्दी पहनना केवल एक नौकरी नहीं, बल्कि वह व्रत है जो नारी अपने देश के लिए लेती है—रक्त, पसीने, हिम्मत और समर्पण का व्रत। वर्दी में बेटी जब सीमा पर तैनात होती है, तो उसके पीछे छूटता है एक घर, एक माँ, एक पिता, एक भाई—लेकिन वह जब राष्ट्र के तिरंगे के नीचे शपथ लेती है, तो वह पूरे देश की बेटी बन जाती है। उसके साहस में केवल प्रशिक्षण की धार नहीं, उसकी आत्मा में संस्कारों की शक्ति होती है।
इस नारी चेतना के उभार ने केवल सेना को नहीं, समाज को भी बदलना शुरू किया है। अब गाँव की बेटियां भी एनसीसी की वर्दी में अपना भविष्य देखती हैं। अब हर माता-पिता अपनी बेटी को भी सैन्य स्कूल भेजने का सपना पालते हैं। वर्दी में महिलाओं की बढ़ती संख्या, उनका सम्मानजनक प्रदर्शन और नेतृत्व, न केवल देश के लिए गौरव की बात है, बल्कि सामाजिक न्याय और लैंगिक समानता की दिशा में ऐतिहासिक कदम भी है।
आज भारतीय सेना में महिलाएं सिर्फ भर्ती नहीं हो रही हैं, वे एक नई परंपरा रच रही हैं—जहां शक्ति, सहानुभूति और कर्तव्य का संगम होता है। उनका यह योगदान, यह वर्दीधारी नारी चेतना, आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा, समाज के लिए संदेश और राष्ट्र के लिए सुरक्षा का नया स्वरूप है।
वास्तव में, भारत की बेटियां अब वर्दी में हैं—चुप्पी नहीं, निर्णय की भाषा बोलती हैं; अब वे सीमाओं की रेखाएं नहीं, सीमाओं की रक्षा करती हैं। यह नया युग भारत की नारी शक्ति का है—वर्दी में ढली एक नई चेतना, एक नया भारत।
©®पायल लक्ष्मी सोनी
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