Posts

Showing posts from May, 2025

वर्दी में भारत की बेटियां

भारत की माटी ने सदा से ऐसी वीरांगनाओं को जन्म दिया है जिन्होंने समय-समय पर यह प्रमाणित किया है कि स्त्री केवल सृजन की शक्ति ही नहीं, अपितु संकट की घड़ी में रक्षा और युद्ध की देवी भी बन सकती है। झांसी की रानी लक्ष्मीबाई जब अपनी पीठ पर पुत्र को बांधकर तलवार लेकर अंग्रेजों से लड़ीं, तब इतिहास ने जाना कि भारत की नारी केवल गृहस्थ की रक्षक नहीं, राष्ट्र की स्वाधीनता की भी अभिभावक है। अहिल्याबाई होलकर ने शासन चलाकर यह सिद्ध किया कि स्त्रियां न्याय, नीति और कर्तव्य का उत्तम समन्वय बनाकर समृद्धि ला सकती हैं। जीजाबाई ने शिवाजी को मातृसंस्कारों से सिंचित कर हिंदवी स्वराज्य का बीज बोया था। आज जब भारत की बेटियां वर्दी पहनकर सीमा पर खड़ी होती हैं, तो इतिहास की यह नारी चेतना वर्तमान में जीवंत होती दिखती है। विंग कमांडर व्योमिका सिंह और कर्नल सोफिया कुरैशी जैसे नाम नारी शक्ति के ऐसे प्रेरणास्रोत हैं जो हर बेटी को यह विश्वास देते हैं कि उनके सपनों की ऊंची उड़ान के लिए कोई भी सीमा अब रुकावट नहीं। विंग कमांडर व्योमिका सिंह ने 18 दिसंबर 2004 को भारतीय वायुसेना में शॉर्ट सर्विस कमीशन के तहत प्रवेश लिया। एक...

Reflection of Emotion: As the Mind, So the Vision

"Jāki rahi bhāvanā jaisī, prabhu mūrat dekhi tin taisī" — This profound verse from Bālkāṇḍa of the Rāmcharitmanas encapsulates a timeless psychological and spiritual truth. It translates as: “As one's feelings are, so is the form of God perceived.” This suggests that the Divine, or any greater truth, appears to each individual in the shape that their own inner emotions and beliefs project. Interestingly, this idea is not limited to devotional philosophy alone; modern psychology echoes the same principle through its studies on perception, projection, and cognitive patterns. To understand how this phenomenon works, one must first consider how the human brain interprets the world. Our perception is not a passive reception of reality but a deeply subjective construction influenced by memory, expectation, mood, and emotion. This explains why two people may witness the same event but walk away with entirely different experiences of it. This aligns with the Perceptual Set Theory...

"भावना का प्रतिबिंब: जैसा मन वैसा दर्शन"

"जाकी रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी" — तुलसीदास की इस अमूल्य चौपाई में मानवीय मन की गहराइयों को अत्यंत सरल शब्दों में व्यक्त किया गया है। इसका अर्थ है कि प्रत्येक व्यक्ति अपनी भावनाओं, विश्वासों और दृष्टिकोण के अनुरूप ही ईश्वर या किसी सत्य को अनुभव करता है। भगवान उसी रूप में दिखाई देते हैं, जैसी हमारे अंत:करण की भावना होती है। यह न केवल एक धार्मिक अनुभव की बात है, बल्कि आधुनिक मनोविज्ञान भी इसी सिद्धांत पर आधारित कई विचार प्रस्तुत करता है, जो हमारे अनुभवों, धारणाओं और आत्म-प्रतिकृति (self-image) को प्रभावित करते हैं। मानव मस्तिष्क की कार्यप्रणाली को समझने के लिए पहले यह जानना ज़रूरी है कि हम अपनी अनुभूतियों को किस आधार पर बनाते हैं। किसी दृश्य, ध्वनि, व्यक्ति या विचार को देखकर हमारे भीतर जो प्रतिक्रिया उत्पन्न होती है, वह केवल उस वस्तु की वास्तविकता नहीं, बल्कि हमारी मानसिक स्थिति, पूर्वाग्रह, अनुभव और मनोदशा पर निर्भर करती है। यही कारण है कि एक ही परिस्थिति दो अलग-अलग व्यक्तियों को भिन्न अनुभव देती है। मनोविज्ञान में इसे "Perceptual Set Theory" कहा जाता...